The journey of self-motivation and personal growth is a lifelong path, filled with twists and turns, triumphs and setbacks. By embracing this journey, we can develop the skills, confidence, and resilience needed to achieve our goals and live a fulfilling life. I hope that my insights and experiences will inspire and motivate you to embark on your own journey of self-discovery and growth.Join me as I share insights, experiences, and practical tips on living a fulfilling life.
Sunday, December 29, 2024
Monday, December 9, 2024
शिव भोलेनाथ स्तुति
जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणा-कर करतार हरे,
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि, सुख-सार हरे
जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर जय-जय प्रेमागार हरे,
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित अनन्त अपार हरे,
निर्गुण जय जय, सगुण अनामय, निराकार साकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
जय रामेश्वर, जय नागेश्वर वैद्यनाथ, केदार हरे,
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ, जय, महाकाल ओंकार हरे,
त्र्यम्बकेश्वर, जय घुश्मेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे,
काशी-पति, श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अघहार हरे,
नील-कण्ठ जय, भूतनाथ जय, मृत्युंजय अविकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
जय महेश जय जय भवेश, जय आदिदेव महादेव विभो,
किस मुख से हे गुणातीत प्रभु! तव अपार गुण वर्णन हो,
जय भवकारक, तारक, हारक पातक-दारक शिव शम्भो,
दीन दुःख हर सर्व सुखाकर, प्रेम सुधाकर की जय हो,
पार लगा दो भव सागर से, बनकर करूणाधार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
जय मनभावन, जय अतिपावन, शोकनशावन,शिव शम्भो
विपद विदारन, अधम उदारन, सत्य सनातन शिव शम्भो,
सहज वचन हर जलज नयनवर धवल-वरन-तन शिव शम्भो,
मदन-कदन-कर पाप हरन-हर, चरन-मनन, धन शिव शम्भो,
विवसन, विश्वरूप, प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
भोलानाथ कृपालु दयामय, औढरदानी शिव योगी,
सरल हृदय,अतिकरुणा सागर, अकथ-कहानी शिव योगी,
निमिष मात्र में देते हैं,नवनिधि मन मानी शिव योगी,
भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसानी शिव योगी,
स्वयम् अकिंचन,जनमनरंजन पर शिव परम उदार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
आशुतोष! इस मोह-मयी निद्रा से मुझे जगा देना,
विषम-वेदना, से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना,
रूप सुधा की एक बूँद से जीवन मुक्त बना देना,
दिव्य-ज्ञान- भंडार-युगल-चरणों को लगन लगा देना,
एक बार इस मन मंदिर में कीजे पद-संचार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
दानी हो, दो भिक्षा में अपनी अनपायनि भक्ति प्रभो,
शक्तिमान हो, दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो,
त्यागी हो, दो इस असार-संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो,
परमपिता हो, दो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभो,
स्वामी हो निज सेवक की सुन लेना करुणा पुकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
तुम बिन ‘बेकल’ हूँ प्राणेश्वर, आ जाओ भगवन्त हरे,
चरण शरण की बाँह गहो, हे उमारमण प्रियकन्त हरे,
विरह व्यथित हूँ दीन दुःखी हूँ दीन दयालु अनन्त हरे,
आओ तुम मेरे हो जाओ, आ जाओ श्रीमंत हरे,
मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
प्रभू का सिमरन
प्रभू का सिमरन
हे मेरे पातशाह! (कृपा कर) मुझे तेरे दर्शन का आनंद प्राप्त हो जाए। हे मेरे पातशाह! मेरे दिल की पीड़ा को तूँ ही जानता हैं। कोई अन्य क्या जान सकता है ? ॥ रहाउ ॥ हे मेरे पातशाह! तूँ सदा कायम रहने वाला मालिक है, तूँ अटल है। जो कुछ तूँ करता हैं, वह भी उकाई-हीन है (उस में कोई भी उणता-कमी नहीं)। हे पातशाह! (सारे संसार में तेरे बिना) अन्य कोई नहीं है (इस लिए) किसी को झूठा नहीं कहा जा सकता ॥१॥ हे मेरे पातशाह! तूँ सब जीवों में मौजूद हैं, सारे जीव दिन रात तेरा ही ध्यान धरते हैं। हे मेरे पातशाह! सारे जीव तेरे से ही (मांगें) मांगते हैं। एक तूँ ही सब जीवों को दातें दे रहा हैं ॥२॥ हे मेरे पातशाह! प्रत्येक जीव तेरे हुक्म में है, कोई जीव तेरे हुक्म से बाहर नहीं हो सकता। हे मेरे पातशाह! सभी जीव तेरे पैदा किए हुए हैंऔर,यह सभी तेरे में ही लीन हो जाते हैं ॥३॥ हे मेरे प्यारे पातशाह! तूँ सभी जीवों की इच्छाएं पूरी करता हैं सभी जीव तेरा ही ध्यान धरते हैं। हे नानक जी के पातशाह! हे मेरे प्यारे! जैसे तुझे अच्छा लगता है, वैसे मुझे (अपने चरणों में) रख। तूँ ही सदा कायम रहने वाला हैं ॥
*राग जैतसरी, घर १ में गुरू रामदास जी की चार-बन्दों वाली बाणी।*
*अकाल पुरख एक है और सतिगुरू की कृपा द्वारा मिलता है।*
*(हे भाई! जब) गुरू ने मेरे सिर ऊपर अपना हाथ रखा, तो मेरे हृदय में परमात्मा का रत्न (जैसा कीमती) नाम आ वसा। (हे भाई! जिस भी मनुष्य को) गुरू ने परमात्मा का नाम दिया, उस के अनेकों जन्मों के पाप दुःख दूर हो गए, (उस के सिर से पापों का) कर्ज़ा उतर गया ॥१॥ हे मेरे मन! (सदा) परमात्मा का नाम सिमरा कर, (परमात्मा) सारे पदार्थ (देने वाला है)। (हे मन! गुरू की श़रण में ही रह) पूरे गुरू ने (ही) परमात्मा का नाम (ह्रदय में) पक्का किया है, और, नाम के बिना मनुष्या जीवन व्यर्थ चला जाता है ॥ रहाउ ॥ हे भाई! जो मनुष्य अपने मन के पीछे चलते है वह गुरू (की श़रण) के बिना मुर्ख हुए रहते हैं, वह सदा माया के मोह में फंसे रहते है। उन्होंने कभी भी गुरू का आसरा नहीं लिया, उनका सारा जीवन व्यर्थ चला जाता है ॥२॥ हे भाई! जो मनुष्य गुरू के चरणों का आसरा लेते हैं, वह गुरू वालेे बन जाते हैं, उनकी ज़िदंगी सफल हो जाती है। हे हरी! हे जगत के नाथ! मेरे ऊपर मेहर कर, मुझे अपने दासों के दासों का दास बना ले ॥३॥ हे गुरू! हम माया मे अँधे हो रहे हैं, हम आत्मिक जीवन की सूझ से अनजान हैं, हमें सही जीवन-जुगत की सूझ नही है, हम आपके बताए हुए जीवन-राह पर चल नही सकते। हे दास नानक जी! (कहो-) हे गुरू! हम अँधियों के अपना पल्ला पकड़ा, ताकि आपके पल्ले लग कर हम आपके बताए हुए रास्ते पर चल सकें ॥४॥१॥*
हे भाई! प्रभू का सिमरन कर, प्रभू का सिमरन कर। सदा राम का सिमरन कर। प्रभू का सिमरन किए बिना बहुत सारे
जीव(विकारों में) डूब जाते हैं।1। रहाउ।पत्नी, पुत्र, शरीर, घर, दौलत - ये सारे सुख देने वाले प्रतीत होते हैं, पर जब मौत रूपी तेरा आखिरी समय आया, तो इनमें से कोई भी तेरा अपना नहीं रह जाएगा।1।अजामल, गज, गनिका -ये विकार करते रहे, पर जब परमात्मा का नाम इन्होंने सिमरा, तो ये भी (इन विकारों में से) पार लांघ गए।2।(हे सज्जन!) तू सूअर, कुत्ते आदि की जूनियों में भटकता रहा, फिर भी तुझे (अब) शर्म नहीं आई (कि तू अभी भी नाम नहीं सिमरता)। परमात्मा का अमृत-नाम विसार के क्यों (विकारों का) जहर खा रहा है?।3।(हे भाई!) शास्त्रों के अनुसार किए जाने वाले कौन से काम है, और शास्त्रों में कौन से कामों के करने की मनाही है– इस वहिम को छोड़ दे, और परमात्मा का नाम सिमर। हे दास कबीर! तू अपने गुरू की कृपा से अपने परमात्मा को ही अपना प्यारा (साथी) बना।4।5।
हे भाई ! जिस मनुख के मस्तक पर भाग्य (उदय हो) उस को प्यारे गुरु ने परमात्मा का नाम दे दिया। उस मनुख का (फिर) सदा का काम ही जगत में यह बन जाता है कि वह औरों को हरि नाम दृढ़ करता है जपता है (नाम जपने के लिए प्रेरणा करता है।।१।। हे भाई! परमात्मा के सेवक के लिए परमात्मा का नाम (ही) बढ़ाई है नाम ही शोभा है। हरि-नाम ही उस कि आत्मिक अवस्था अहि, नाम ही उस की इज्ज़त है। जो कुछ परमात्मा की रजा में होता है, सेवक उस को (सर माथे पर) मानता है।।१।।रहाउ।। परमात्मा का नाम-धन जिस मनुख के पास है, वोही पूरा साहूकार है। हे नानक! वह मनुख हरि-नाम सुमिरन को ही अपना असली विहार समझता है, नाम का ही उस को सहारा रहता है, नाम की ही वह कमाई खाता है।
Thursday, June 20, 2024
अच्छे विचार करे विचार
पहचान की नुमाईश, जरा कम करें... जहाँ भी "मैं" लिखा है, उसे "हम" करें...
हमारी "इच्छाओं" से ज़्यादा "सुन्दर"... "ईश्वर" की "योजनाएँ" होती हैं...
पहाड़ो पर बैठकर तप करना सरल है... लेकिन परिवार में सबके बीच रहकर धीरज बनाये रखना कठिन है, और यही सच्चा तप है...
"ईश्वर" हमें कभी "सजा" नही देते... हमारे "कर्म" ही हमें "सजा" देते है..
हर "परिस्थिति" में "धैर्य" रखना... "ज्ञान" का सबसे बड़ा "संकेत" है..
"शांत" रहना सीखें... आपका "गुस्सा" किसी और की "जीत" है..
"सफलता" का "मुख्य आधार"... "सकारात्मक सोच" और "निरंतर प्रयास" है
"शरीर " का वजन बढ़े तो व्यायाम कीजिए...
"मन " का बढ़े तो ध्यान कीजिए..
और "धन " का बढ़े तो दान कीजिए..
Saturday, June 8, 2024
नाम जप
नाम जप करना जीवन में प्रभु को पाने का एक सुंदर मार्ग हैं,मन को नियंत्रित रखता है नाम जप।
सरल और आसान लगता है पर उतना सहज नहीं है,आपको नाम जप हर समय करना है, ताकि एक पल आहे जब आप प्रभु से मिल जाय।
नाम जप करते हुए प्रभु के बताए हुए मार्ग पर चलना है।
मन में बहुत आतंक होगा, माया तुम्हे अपने पास खींच कर नाम जप से अलग करेगी। मन को एकाग्र करके शांत रखे। प्रभु पर विश्वास रखें। नाम जप ही जीवन में आने वाले कर्म को अच्छा करेगा।
काम, क्रोध, लोभ, लालच, अहंकार, भय यह सब से परे होकर नाम जप करें।
नाम जप में बहुत शक्ति होती है भक्ति करने की।
आप भगवान राम जी के भक्त हनुमान जी को देखे हमेशा राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम नाम जप करते हैं ।
भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु जी की अराधना करते मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करते है।
भक्तों में सर्वश्रेष्ठ देवर्षि नारद भगवान विष्णु जी के निरंतर भगवद-गुणों नारायण-नारायण नारायण-नारायण नारायण-नारायण नारायण-नारायण का जप करते है ।
Subtraction of numbers solved
Subtraction of numbers from 1 to 10 in reverse order
Magic of of maths in subtraction
- 1-10=-9
- 2-9=-7
- 3-8=-5
- 4-7=-3
- 5-6=-1
- 6-5=1
- 7-4=3
- 8-3=5
- 9-2=7
- 10-1=9
Addition in doubles
Simple addition for children
1+1=2
2+2=4
4+4=8
8+8=16
16+16=32
32+32=64
64+64=128
128+128=256
256+256=512
512+512=1024
1024+1024=2048
2048+2048=4096
4096+4096=8192
8192+8192=16384
16384+16384=32768
32768+32768=65536
65536+65536=131072
131072+131072=262144
262144+262144=524288
524288+524288=1048576
1048576+1048576=2097152
2097152+2097152=4194304
4194304+4194304=8388608
8388608+8388608=16777216
16777216+16777216=33554432
33554432+33554432=67108864
67108864+67108864=134217728
134217728+134217728=268435456
268435456+268435456=536870912
536870912+536870912=1073741824
1073741824+1073741824=2147483648
2147483648+2147483648=4294967296
4294967296+4294967296=8589934592
8589934592+8589934592=17179869184
17179869184+17179869184=34359738368
34359738368+34359738368=68719476736
68719476736+68719476736=137438953472
137438953472+137438953472=274877906944
Saturday, June 1, 2024
Four Vedas
The time of the creation of the Vedas was 4500 BC.
Veda is derived from the Sanskrit word, which means knowledge
Four Vedas:
Rigveda,
Yajurveda,
Samaveda, and
Atharvaveda.
Rig-status,
Yaju-transformation,
Sama-dynamic, and
Atharva-root.
Rik is also called Dharma,
Yajuh is called Moksha,
Sama is called Kama, and
Atharva is also called Artha.
On the basis of these, Dharmashastra, Arthashastra, Kamashastra, and Mokshashastra have been created.
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