Monday, December 9, 2024

प्रभू का सिमरन

  प्रभू का सिमरन


हे मेरे पातशाह! (कृपा कर) मुझे तेरे दर्शन का आनंद प्राप्त हो जाए। हे मेरे पातशाह! मेरे दिल की पीड़ा को तूँ ही जानता हैं। कोई अन्य क्या जान सकता है ? ॥ रहाउ ॥ हे मेरे पातशाह! तूँ सदा कायम रहने वाला मालिक है, तूँ अटल है। जो कुछ तूँ करता हैं, वह भी उकाई-हीन है (उस में कोई भी उणता-कमी नहीं)। हे पातशाह! (सारे संसार में तेरे बिना) अन्य कोई नहीं है (इस लिए) किसी को झूठा नहीं कहा जा सकता ॥१॥ हे मेरे पातशाह! तूँ सब जीवों में मौजूद हैं, सारे जीव दिन रात तेरा ही ध्यान धरते हैं। हे मेरे पातशाह! सारे जीव तेरे से ही (मांगें) मांगते हैं। एक तूँ ही सब जीवों को दातें दे रहा हैं ॥२॥ हे मेरे पातशाह! प्रत्येक जीव तेरे हुक्म में है, कोई जीव तेरे हुक्म से बाहर नहीं हो सकता। हे मेरे पातशाह! सभी जीव तेरे पैदा किए हुए हैंऔर,यह सभी तेरे में ही लीन हो जाते हैं ॥३॥ हे मेरे प्यारे पातशाह! तूँ सभी जीवों की इच्छाएं पूरी करता हैं सभी जीव तेरा ही ध्यान धरते हैं। हे नानक जी के पातशाह! हे मेरे प्यारे! जैसे तुझे अच्छा लगता है, वैसे मुझे (अपने चरणों में) रख। तूँ ही सदा कायम रहने वाला हैं ॥


*राग जैतसरी, घर १ में गुरू रामदास जी की चार-बन्दों वाली बाणी।* 

*अकाल पुरख एक है और सतिगुरू की कृपा द्वारा मिलता है।*

*(हे भाई! जब) गुरू ने मेरे सिर ऊपर अपना हाथ रखा, तो मेरे हृदय में परमात्मा का रत्न (जैसा कीमती) नाम आ वसा। (हे भाई! जिस भी मनुष्य को) गुरू ने परमात्मा का नाम दिया, उस के अनेकों जन्मों के पाप दुःख दूर हो गए, (उस के सिर से पापों का) कर्ज़ा उतर गया ॥१॥ हे मेरे मन! (सदा) परमात्मा का नाम सिमरा कर, (परमात्मा) सारे पदार्थ (देने वाला है)। (हे मन! गुरू की श़रण में ही रह) पूरे गुरू ने (ही) परमात्मा का नाम (ह्रदय में) पक्का किया है, और, नाम के बिना मनुष्या जीवन व्यर्थ चला जाता है ॥ रहाउ ॥ हे भाई! जो मनुष्य अपने मन के पीछे चलते है वह गुरू (की श़रण) के बिना मुर्ख हुए रहते हैं, वह सदा माया के मोह में फंसे रहते है। उन्होंने कभी भी गुरू का आसरा नहीं लिया, उनका सारा जीवन व्यर्थ चला जाता है ॥२॥ हे भाई! जो मनुष्य गुरू के चरणों का आसरा लेते हैं, वह गुरू वालेे बन जाते हैं, उनकी ज़िदंगी सफल हो जाती है। हे हरी! हे जगत के नाथ! मेरे ऊपर मेहर कर, मुझे अपने दासों के दासों का दास बना ले ॥३॥ हे गुरू! हम माया मे अँधे हो रहे हैं, हम आत्मिक जीवन की सूझ से अनजान हैं, हमें सही जीवन-जुगत की सूझ नही है, हम आपके बताए हुए जीवन-राह पर चल नही सकते। हे दास नानक जी! (कहो-) हे गुरू! हम अँधियों के अपना पल्ला पकड़ा, ताकि आपके पल्ले लग कर हम आपके बताए हुए रास्ते पर चल सकें ॥४॥१॥*



हे भाई! प्रभू का सिमरन कर, प्रभू का सिमरन कर। सदा राम का सिमरन कर। प्रभू का सिमरन किए बिना बहुत सारे

जीव(विकारों में) डूब जाते हैं।1। रहाउ।पत्नी, पुत्र, शरीर, घर, दौलत - ये सारे सुख देने वाले प्रतीत होते हैं, पर जब मौत रूपी तेरा आखिरी समय आया, तो इनमें से कोई भी तेरा अपना नहीं रह जाएगा।1।अजामल, गज, गनिका -ये विकार करते रहे, पर जब परमात्मा का नाम इन्होंने सिमरा, तो ये भी (इन विकारों में से) पार लांघ गए।2।(हे सज्जन!) तू सूअर, कुत्ते आदि की जूनियों में भटकता रहा, फिर भी तुझे (अब) शर्म नहीं आई (कि तू अभी भी नाम नहीं सिमरता)। परमात्मा का अमृत-नाम विसार के क्यों (विकारों का) जहर खा रहा है?।3।(हे भाई!) शास्त्रों के अनुसार किए जाने वाले कौन से काम है, और शास्त्रों में कौन से कामों के करने की मनाही है– इस वहिम को छोड़ दे, और परमात्मा का नाम सिमर। हे दास कबीर! तू अपने गुरू की कृपा से अपने परमात्मा को ही अपना प्यारा (साथी) बना।4।5।



हे भाई ! जिस मनुख के मस्तक पर भाग्य (उदय हो) उस को प्यारे गुरु ने परमात्मा का नाम दे दिया। उस मनुख का (फिर) सदा का काम ही जगत में यह बन जाता है कि वह औरों को हरि नाम दृढ़ करता है जपता है (नाम जपने के लिए प्रेरणा करता है।।१।। हे भाई! परमात्मा के सेवक के लिए परमात्मा का नाम (ही) बढ़ाई है नाम ही शोभा है। हरि-नाम ही उस कि आत्मिक अवस्था अहि, नाम ही उस की इज्ज़त है। जो कुछ परमात्मा की रजा में होता है, सेवक उस को (सर माथे पर) मानता है।।१।।रहाउ।। परमात्मा का नाम-धन जिस मनुख के पास है, वोही पूरा साहूकार है। हे नानक! वह मनुख हरि-नाम सुमिरन को ही अपना असली विहार समझता है, नाम का ही उस को सहारा रहता है, नाम की ही वह कमाई खाता है।

Thursday, June 20, 2024

अच्छे विचार करे विचार

 पहचान की नुमाईश, जरा कम करें... जहाँ भी "मैं" लिखा है, उसे "हम" करें...


हमारी "इच्छाओं" से ज़्यादा "सुन्दर"... "ईश्वर" की "योजनाएँ" होती हैं...


पहाड़ो पर बैठकर तप करना सरल है... लेकिन परिवार में सबके बीच रहकर धीरज बनाये रखना कठिन है, और यही सच्चा तप है...


"ईश्वर" हमें कभी "सजा" नही देते... हमारे "कर्म" ही हमें "सजा" देते है..


हर "परिस्थिति" में "धैर्य" रखना... "ज्ञान" का सबसे बड़ा "संकेत" है..


"शांत" रहना सीखें... आपका "गुस्सा" किसी और की "जीत" है..


"सफलता" का "मुख्य आधार"... "सकारात्मक सोच" और "निरंतर प्रयास" है


"चालाकी" चार दिन "चमकती" है... और "ईमानदारी" ज़िंदगी भर.
"शरीर " का वजन बढ़े तो व्यायाम कीजिए...
"मन " का बढ़े तो ध्यान कीजिए..
और "धन " का बढ़े तो दान कीजिए..

Saturday, June 8, 2024

नाम जप

नाम जप करना जीवन में प्रभु को पाने का एक सुंदर मार्ग हैं,मन को नियंत्रित रखता है नाम जप।

सरल और आसान लगता है पर उतना सहज नहीं है,आपको नाम जप हर समय करना है, ताकि एक पल आहे जब आप प्रभु से मिल जाय।

नाम जप करते हुए प्रभु के बताए हुए मार्ग पर चलना है।

मन में बहुत आतंक होगा, माया तुम्हे अपने पास खींच कर नाम जप से अलग करेगी। मन को एकाग्र करके शांत रखे। प्रभु पर विश्वास रखें। नाम जप ही जीवन में आने वाले कर्म को अच्छा करेगा।

काम, क्रोध, लोभ, लालच, अहंकार, भय यह सब से परे होकर नाम जप करें।

नाम जप में बहुत शक्ति होती है भक्ति करने की।

आप भगवान राम जी के भक्त हनुमान जी को देखे हमेशा राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम नाम जप करते हैं ।

भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु जी की अराधना करते मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करते है।

भक्तों में सर्वश्रेष्ठ देवर्षि नारद भगवान विष्णु जी के निरंतर भगवद-गुणों  नारायण-नारायण नारायण-नारायण नारायण-नारायण नारायण-नारायण का जप करते है ।

Subtraction of numbers solved

 Subtraction of numbers from 1 to 10 in reverse order

Magic of of maths in subtraction 

1-10=-9

2-9=-7

3-8=-5

4-7=-3

5-6=-1

6-5=1

7-4=3

8-3=5

9-2=7

10-1=9

Addition in doubles

 Simple addition for children 

1+1=2

2+2=4

4+4=8

8+8=16

16+16=32

32+32=64

64+64=128

128+128=256

256+256=512

512+512=1024

1024+1024=2048

2048+2048=4096

4096+4096=8192

8192+8192=16384

16384+16384=32768

32768+32768=65536

65536+65536=131072

131072+131072=262144

262144+262144=524288

524288+524288=1048576

1048576+1048576=2097152

2097152+2097152=4194304

4194304+4194304=8388608

8388608+8388608=16777216

16777216+16777216=33554432

33554432+33554432=67108864

67108864+67108864=134217728

134217728+134217728=268435456

268435456+268435456=536870912

536870912+536870912=1073741824

1073741824+1073741824=2147483648

2147483648+2147483648=4294967296

4294967296+4294967296=8589934592

8589934592+8589934592=17179869184

17179869184+17179869184=34359738368

34359738368+34359738368=68719476736

68719476736+68719476736=137438953472

137438953472+137438953472=274877906944

Saturday, June 1, 2024

Four Vedas

 The time of the creation of the Vedas was 4500 BC.

Veda is derived from the Sanskrit word, which means knowledge


Four Vedas: 

Rigveda, 

Yajurveda, 

Samaveda, and 

Atharvaveda. 



Rig-status,

Yaju-transformation, 

Sama-dynamic, and 

Atharva-root. 


Rik is also called Dharma,

Yajuh is called Moksha, 

Sama is called Kama, and

Atharva is also called Artha.

 On the basis of these, Dharmashastra, Arthashastra, Kamashastra, and Mokshashastra have been created.

Tuesday, May 14, 2024

रामायण

रामायण


दशरथ की तीन पत्नियाँ – कौशल्या, सुमित्रा , कैकेयी
दशरथ के चार पुत्र – राम,लक्ष्मण,भरत,शत्रुघ्न


दशरथ: राम के पिता और कौशल के राजा

कौशल्या: दशरथ की रानी और राम की माता

सुमित्रा: दशरथ की पत्नी; लक्ष्मण और शत्रुघ्न की माता

कैकेयी: दशरथ की सबसे छोटी रानी और भरत की माँ जिन्होंने राम के वनवास के लिए कहा था


राम के तीन भाई लक्ष्मण, भरत,शत्रुघ्न


राम: रामायण के मुख्य नायक - भगवान विष्णु का अवतार; कोसल के राजा दशरथ के पुत्र अयोध्या के राजकुमार

लक्ष्मण: रानी सुमित्रा के पुत्र और राम के भाई उर्फ लक्ष्मण

भरत: राम के भाई और कैकेयी के पुत्र

शत्रुघ्न: राम के छोटे भाई



जनक: मिथिला के राजा; सीता के पिता, जिन्होंने उन्हें कुंड में पाया था

सुनयना: राजा जनक की पत्नी; सीता की माता

सीता: जनक की बेटी और राम की पत्नी

उर्मिला: लक्ष्मण की पत्नी; राजा जनक की बेटी और सीता की बहन

मांडवी: भरत की पत्नी और राजा जनक की बेटी

श्रुतकीर्ति: शत्रुघ्न की पत्नी और राजा जनक की बेटी


हनुमान: पवन का पुत्र - पवन देवता; राम के भक्त और वानर जनजाति में एक प्रमुख योद्धा


राम और सीता के दो पुत्र-लव ,कुश

लव: राम और सीता के पुत्र

कुश: राम और सीता के पुत्र


रावण: लंका के दस सिरों वाले राजा, जिन्होंने सीता का हरण किया था; विभीषण और सूर्पनखा के भाई; इंद्रजीत के पिता; मंदोदरी के पति


विभीषण: रावण का भाई जो राम से मिलने के लिए लंका छोड़ देता है और बाद में लंका का राजा बन जाता है


कुंभकर्ण: रावण का भाई सोने और खाने के लिए जाना जाता है


इंद्रजीत: रावण का पुत्र जिसने जादुई शक्तियों के साथ राम से युद्ध किया


मेघनाद: रावण का पुत्र, जिसने अपने बाण से लक्ष्मण को युद्ध के मैदान में बेहोश कर दिया

Program to develop for cost saving in hotel industry

 To develop a program for cost-saving in a hotel, you can consider the following features: Key Features 1. *Room Management*: Optimize room ...