google.com, pub-4617457846989927, DIRECT, f08c47fec0942fa0 Learn to enjoy every minute of your life.Only I can change my life.: December 2024

Sunday, December 29, 2024

हिम्मत

 अंधेरे में एक करोड का हीरा गिर गया था, उसे ढूंढने के लिए पाँच रूपएं की मोमबत्ती ने सहयोग किया। अभी बताओ वह पाँच रूपएं की एक छोटी सी मोमबत्ती थी तो हीरा मिला अगर उस समय मोमबत्ती काम नहीं करती तो हीरा कहीं गुम हो जाता।


मोमबत्ती की तरह इंसान भी है, इंसान कितना भी छोटा हो अगर वह सही वक्त पर काम आता है तो वह इंसान छोटा नहीं सबसे बड़ा आदमी कहलाता है।


जीवन में तकलीफ उसी को आती है, जो हमेशा जवाबदारी" उठाने को तैयार रहते है और जवाबदारी लेनेवाले कभी हारते नहीं, यातो जीतते" है, या फिर "सिखते है। 

अभिमन्यु की एक बात बड़ी शिक्षा देती है.....

 "हिम्मत से हारना, 

पर हिम्मत मत हारना ।"

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Thoughts good

 


Guru Gobind Singh Ji

 


Satnaam Waheguru ji 
Guru Gobind Singh Ji 

Monday, December 9, 2024

शिव भोलेनाथ स्तुति

 जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणा-कर करतार हरे,
 
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि, सुख-सार हरे

जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर जय-जय प्रेमागार हरे,
 
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित अनन्त अपार हरे,
 
निर्गुण जय जय, सगुण अनामय, निराकार साकार हरे।
 
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
 
जय रामेश्वर, जय नागेश्वर वैद्यनाथ, केदार हरे,
 
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ, जय, महाकाल ओंकार हरे,
 
त्र्यम्बकेश्वर, जय घुश्मेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे,
 
काशी-पति, श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अघहार हरे,
 
नील-कण्ठ जय, भूतनाथ जय, मृत्युंजय अविकार हरे।
 
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
 
जय महेश जय जय भवेश, जय आदिदेव महादेव विभो,
किस मुख से हे गुणातीत प्रभु! तव अपार गुण वर्णन हो,
 
जय भवकारक, तारक, हारक पातक-दारक शिव शम्भो,
 
दीन दुःख हर सर्व सुखाकर, प्रेम सुधाकर की जय हो,
 
पार लगा दो भव सागर से, बनकर करूणाधार हरे।
 
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
 
जय मनभावन, जय अतिपावन, शोकनशावन,शिव शम्भो
 
विपद विदारन, अधम उदारन, सत्य सनातन शिव शम्भो,
 
सहज वचन हर जलज नयनवर धवल-वरन-तन शिव शम्भो,
 
मदन-कदन-कर पाप हरन-हर, चरन-मनन, धन शिव शम्भो,
 
विवसन, विश्वरूप, प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे।
 
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
 
भोलानाथ कृपालु दयामय, औढरदानी शिव योगी,
 
सरल हृदय,अतिकरुणा सागर, अकथ-कहानी शिव योगी,
 
निमिष मात्र में देते हैं,नवनिधि मन मानी शिव योगी,
 
भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसानी शिव योगी,
 
स्वयम्‌ अकिंचन,जनमनरंजन पर शिव परम उदार हरे।
 
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
 
आशुतोष! इस मोह-मयी निद्रा से मुझे जगा देना,
 
विषम-वेदना, से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना,
 
रूप सुधा की एक बूँद से जीवन मुक्त बना देना,
 
दिव्य-ज्ञान- भंडार-युगल-चरणों को लगन लगा देना,

एक बार इस मन मंदिर में कीजे पद-संचार हरे।
 
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
 
दानी हो, दो भिक्षा में अपनी अनपायनि भक्ति प्रभो,
 
शक्तिमान हो, दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो,
 
त्यागी हो, दो इस असार-संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो,
 
परमपिता हो, दो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभो,
 
स्वामी हो निज सेवक की सुन लेना करुणा पुकार हरे।
 
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
 
तुम बिन ‘बेकल’ हूँ प्राणेश्वर, आ जाओ भगवन्त हरे,
 
चरण शरण की बाँह गहो, हे उमारमण प्रियकन्त हरे,
 
विरह व्यथित हूँ दीन दुःखी हूँ दीन दयालु अनन्त हरे,

आओ तुम मेरे हो जाओ, आ जाओ श्रीमंत हरे,
 
मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे।
 
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

प्रभू का सिमरन

  प्रभू का सिमरन


हे मेरे पातशाह! (कृपा कर) मुझे तेरे दर्शन का आनंद प्राप्त हो जाए। हे मेरे पातशाह! मेरे दिल की पीड़ा को तूँ ही जानता हैं। कोई अन्य क्या जान सकता है ? ॥ रहाउ ॥ हे मेरे पातशाह! तूँ सदा कायम रहने वाला मालिक है, तूँ अटल है। जो कुछ तूँ करता हैं, वह भी उकाई-हीन है (उस में कोई भी उणता-कमी नहीं)। हे पातशाह! (सारे संसार में तेरे बिना) अन्य कोई नहीं है (इस लिए) किसी को झूठा नहीं कहा जा सकता ॥१॥ हे मेरे पातशाह! तूँ सब जीवों में मौजूद हैं, सारे जीव दिन रात तेरा ही ध्यान धरते हैं। हे मेरे पातशाह! सारे जीव तेरे से ही (मांगें) मांगते हैं। एक तूँ ही सब जीवों को दातें दे रहा हैं ॥२॥ हे मेरे पातशाह! प्रत्येक जीव तेरे हुक्म में है, कोई जीव तेरे हुक्म से बाहर नहीं हो सकता। हे मेरे पातशाह! सभी जीव तेरे पैदा किए हुए हैंऔर,यह सभी तेरे में ही लीन हो जाते हैं ॥३॥ हे मेरे प्यारे पातशाह! तूँ सभी जीवों की इच्छाएं पूरी करता हैं सभी जीव तेरा ही ध्यान धरते हैं। हे नानक जी के पातशाह! हे मेरे प्यारे! जैसे तुझे अच्छा लगता है, वैसे मुझे (अपने चरणों में) रख। तूँ ही सदा कायम रहने वाला हैं ॥


*राग जैतसरी, घर १ में गुरू रामदास जी की चार-बन्दों वाली बाणी।* 

*अकाल पुरख एक है और सतिगुरू की कृपा द्वारा मिलता है।*

*(हे भाई! जब) गुरू ने मेरे सिर ऊपर अपना हाथ रखा, तो मेरे हृदय में परमात्मा का रत्न (जैसा कीमती) नाम आ वसा। (हे भाई! जिस भी मनुष्य को) गुरू ने परमात्मा का नाम दिया, उस के अनेकों जन्मों के पाप दुःख दूर हो गए, (उस के सिर से पापों का) कर्ज़ा उतर गया ॥१॥ हे मेरे मन! (सदा) परमात्मा का नाम सिमरा कर, (परमात्मा) सारे पदार्थ (देने वाला है)। (हे मन! गुरू की श़रण में ही रह) पूरे गुरू ने (ही) परमात्मा का नाम (ह्रदय में) पक्का किया है, और, नाम के बिना मनुष्या जीवन व्यर्थ चला जाता है ॥ रहाउ ॥ हे भाई! जो मनुष्य अपने मन के पीछे चलते है वह गुरू (की श़रण) के बिना मुर्ख हुए रहते हैं, वह सदा माया के मोह में फंसे रहते है। उन्होंने कभी भी गुरू का आसरा नहीं लिया, उनका सारा जीवन व्यर्थ चला जाता है ॥२॥ हे भाई! जो मनुष्य गुरू के चरणों का आसरा लेते हैं, वह गुरू वालेे बन जाते हैं, उनकी ज़िदंगी सफल हो जाती है। हे हरी! हे जगत के नाथ! मेरे ऊपर मेहर कर, मुझे अपने दासों के दासों का दास बना ले ॥३॥ हे गुरू! हम माया मे अँधे हो रहे हैं, हम आत्मिक जीवन की सूझ से अनजान हैं, हमें सही जीवन-जुगत की सूझ नही है, हम आपके बताए हुए जीवन-राह पर चल नही सकते। हे दास नानक जी! (कहो-) हे गुरू! हम अँधियों के अपना पल्ला पकड़ा, ताकि आपके पल्ले लग कर हम आपके बताए हुए रास्ते पर चल सकें ॥४॥१॥*



हे भाई! प्रभू का सिमरन कर, प्रभू का सिमरन कर। सदा राम का सिमरन कर। प्रभू का सिमरन किए बिना बहुत सारे

जीव(विकारों में) डूब जाते हैं।1। रहाउ।पत्नी, पुत्र, शरीर, घर, दौलत - ये सारे सुख देने वाले प्रतीत होते हैं, पर जब मौत रूपी तेरा आखिरी समय आया, तो इनमें से कोई भी तेरा अपना नहीं रह जाएगा।1।अजामल, गज, गनिका -ये विकार करते रहे, पर जब परमात्मा का नाम इन्होंने सिमरा, तो ये भी (इन विकारों में से) पार लांघ गए।2।(हे सज्जन!) तू सूअर, कुत्ते आदि की जूनियों में भटकता रहा, फिर भी तुझे (अब) शर्म नहीं आई (कि तू अभी भी नाम नहीं सिमरता)। परमात्मा का अमृत-नाम विसार के क्यों (विकारों का) जहर खा रहा है?।3।(हे भाई!) शास्त्रों के अनुसार किए जाने वाले कौन से काम है, और शास्त्रों में कौन से कामों के करने की मनाही है– इस वहिम को छोड़ दे, और परमात्मा का नाम सिमर। हे दास कबीर! तू अपने गुरू की कृपा से अपने परमात्मा को ही अपना प्यारा (साथी) बना।4।5।



हे भाई ! जिस मनुख के मस्तक पर भाग्य (उदय हो) उस को प्यारे गुरु ने परमात्मा का नाम दे दिया। उस मनुख का (फिर) सदा का काम ही जगत में यह बन जाता है कि वह औरों को हरि नाम दृढ़ करता है जपता है (नाम जपने के लिए प्रेरणा करता है।।१।। हे भाई! परमात्मा के सेवक के लिए परमात्मा का नाम (ही) बढ़ाई है नाम ही शोभा है। हरि-नाम ही उस कि आत्मिक अवस्था अहि, नाम ही उस की इज्ज़त है। जो कुछ परमात्मा की रजा में होता है, सेवक उस को (सर माथे पर) मानता है।।१।।रहाउ।। परमात्मा का नाम-धन जिस मनुख के पास है, वोही पूरा साहूकार है। हे नानक! वह मनुख हरि-नाम सुमिरन को ही अपना असली विहार समझता है, नाम का ही उस को सहारा रहता है, नाम की ही वह कमाई खाता है।

हिम्मत

 अंधेरे में एक करोड का हीरा गिर गया था, उसे ढूंढने के लिए पाँच रूपएं की मोमबत्ती ने सहयोग किया। अभी बताओ वह पाँच रूपएं की एक छोटी सी मोमबत्त...