google.com, pub-4617457846989927, DIRECT, f08c47fec0942fa0 Learn to enjoy every minute of your life.Only I can change my life.: 2024

Monday, December 9, 2024

शिव भोलेनाथ स्तुति

 जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणा-कर करतार हरे,
 
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि, सुख-सार हरे

जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर जय-जय प्रेमागार हरे,
 
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित अनन्त अपार हरे,
 
निर्गुण जय जय, सगुण अनामय, निराकार साकार हरे।
 
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
 
जय रामेश्वर, जय नागेश्वर वैद्यनाथ, केदार हरे,
 
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ, जय, महाकाल ओंकार हरे,
 
त्र्यम्बकेश्वर, जय घुश्मेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे,
 
काशी-पति, श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अघहार हरे,
 
नील-कण्ठ जय, भूतनाथ जय, मृत्युंजय अविकार हरे।
 
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
 
जय महेश जय जय भवेश, जय आदिदेव महादेव विभो,
किस मुख से हे गुणातीत प्रभु! तव अपार गुण वर्णन हो,
 
जय भवकारक, तारक, हारक पातक-दारक शिव शम्भो,
 
दीन दुःख हर सर्व सुखाकर, प्रेम सुधाकर की जय हो,
 
पार लगा दो भव सागर से, बनकर करूणाधार हरे।
 
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
 
जय मनभावन, जय अतिपावन, शोकनशावन,शिव शम्भो
 
विपद विदारन, अधम उदारन, सत्य सनातन शिव शम्भो,
 
सहज वचन हर जलज नयनवर धवल-वरन-तन शिव शम्भो,
 
मदन-कदन-कर पाप हरन-हर, चरन-मनन, धन शिव शम्भो,
 
विवसन, विश्वरूप, प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे।
 
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
 
भोलानाथ कृपालु दयामय, औढरदानी शिव योगी,
 
सरल हृदय,अतिकरुणा सागर, अकथ-कहानी शिव योगी,
 
निमिष मात्र में देते हैं,नवनिधि मन मानी शिव योगी,
 
भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसानी शिव योगी,
 
स्वयम्‌ अकिंचन,जनमनरंजन पर शिव परम उदार हरे।
 
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
 
आशुतोष! इस मोह-मयी निद्रा से मुझे जगा देना,
 
विषम-वेदना, से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना,
 
रूप सुधा की एक बूँद से जीवन मुक्त बना देना,
 
दिव्य-ज्ञान- भंडार-युगल-चरणों को लगन लगा देना,

एक बार इस मन मंदिर में कीजे पद-संचार हरे।
 
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
 
दानी हो, दो भिक्षा में अपनी अनपायनि भक्ति प्रभो,
 
शक्तिमान हो, दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो,
 
त्यागी हो, दो इस असार-संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो,
 
परमपिता हो, दो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभो,
 
स्वामी हो निज सेवक की सुन लेना करुणा पुकार हरे।
 
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
 
तुम बिन ‘बेकल’ हूँ प्राणेश्वर, आ जाओ भगवन्त हरे,
 
चरण शरण की बाँह गहो, हे उमारमण प्रियकन्त हरे,
 
विरह व्यथित हूँ दीन दुःखी हूँ दीन दयालु अनन्त हरे,

आओ तुम मेरे हो जाओ, आ जाओ श्रीमंत हरे,
 
मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे।
 
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

प्रभू का सिमरन

  प्रभू का सिमरन


हे मेरे पातशाह! (कृपा कर) मुझे तेरे दर्शन का आनंद प्राप्त हो जाए। हे मेरे पातशाह! मेरे दिल की पीड़ा को तूँ ही जानता हैं। कोई अन्य क्या जान सकता है ? ॥ रहाउ ॥ हे मेरे पातशाह! तूँ सदा कायम रहने वाला मालिक है, तूँ अटल है। जो कुछ तूँ करता हैं, वह भी उकाई-हीन है (उस में कोई भी उणता-कमी नहीं)। हे पातशाह! (सारे संसार में तेरे बिना) अन्य कोई नहीं है (इस लिए) किसी को झूठा नहीं कहा जा सकता ॥१॥ हे मेरे पातशाह! तूँ सब जीवों में मौजूद हैं, सारे जीव दिन रात तेरा ही ध्यान धरते हैं। हे मेरे पातशाह! सारे जीव तेरे से ही (मांगें) मांगते हैं। एक तूँ ही सब जीवों को दातें दे रहा हैं ॥२॥ हे मेरे पातशाह! प्रत्येक जीव तेरे हुक्म में है, कोई जीव तेरे हुक्म से बाहर नहीं हो सकता। हे मेरे पातशाह! सभी जीव तेरे पैदा किए हुए हैंऔर,यह सभी तेरे में ही लीन हो जाते हैं ॥३॥ हे मेरे प्यारे पातशाह! तूँ सभी जीवों की इच्छाएं पूरी करता हैं सभी जीव तेरा ही ध्यान धरते हैं। हे नानक जी के पातशाह! हे मेरे प्यारे! जैसे तुझे अच्छा लगता है, वैसे मुझे (अपने चरणों में) रख। तूँ ही सदा कायम रहने वाला हैं ॥


*राग जैतसरी, घर १ में गुरू रामदास जी की चार-बन्दों वाली बाणी।* 

*अकाल पुरख एक है और सतिगुरू की कृपा द्वारा मिलता है।*

*(हे भाई! जब) गुरू ने मेरे सिर ऊपर अपना हाथ रखा, तो मेरे हृदय में परमात्मा का रत्न (जैसा कीमती) नाम आ वसा। (हे भाई! जिस भी मनुष्य को) गुरू ने परमात्मा का नाम दिया, उस के अनेकों जन्मों के पाप दुःख दूर हो गए, (उस के सिर से पापों का) कर्ज़ा उतर गया ॥१॥ हे मेरे मन! (सदा) परमात्मा का नाम सिमरा कर, (परमात्मा) सारे पदार्थ (देने वाला है)। (हे मन! गुरू की श़रण में ही रह) पूरे गुरू ने (ही) परमात्मा का नाम (ह्रदय में) पक्का किया है, और, नाम के बिना मनुष्या जीवन व्यर्थ चला जाता है ॥ रहाउ ॥ हे भाई! जो मनुष्य अपने मन के पीछे चलते है वह गुरू (की श़रण) के बिना मुर्ख हुए रहते हैं, वह सदा माया के मोह में फंसे रहते है। उन्होंने कभी भी गुरू का आसरा नहीं लिया, उनका सारा जीवन व्यर्थ चला जाता है ॥२॥ हे भाई! जो मनुष्य गुरू के चरणों का आसरा लेते हैं, वह गुरू वालेे बन जाते हैं, उनकी ज़िदंगी सफल हो जाती है। हे हरी! हे जगत के नाथ! मेरे ऊपर मेहर कर, मुझे अपने दासों के दासों का दास बना ले ॥३॥ हे गुरू! हम माया मे अँधे हो रहे हैं, हम आत्मिक जीवन की सूझ से अनजान हैं, हमें सही जीवन-जुगत की सूझ नही है, हम आपके बताए हुए जीवन-राह पर चल नही सकते। हे दास नानक जी! (कहो-) हे गुरू! हम अँधियों के अपना पल्ला पकड़ा, ताकि आपके पल्ले लग कर हम आपके बताए हुए रास्ते पर चल सकें ॥४॥१॥*



हे भाई! प्रभू का सिमरन कर, प्रभू का सिमरन कर। सदा राम का सिमरन कर। प्रभू का सिमरन किए बिना बहुत सारे

जीव(विकारों में) डूब जाते हैं।1। रहाउ।पत्नी, पुत्र, शरीर, घर, दौलत - ये सारे सुख देने वाले प्रतीत होते हैं, पर जब मौत रूपी तेरा आखिरी समय आया, तो इनमें से कोई भी तेरा अपना नहीं रह जाएगा।1।अजामल, गज, गनिका -ये विकार करते रहे, पर जब परमात्मा का नाम इन्होंने सिमरा, तो ये भी (इन विकारों में से) पार लांघ गए।2।(हे सज्जन!) तू सूअर, कुत्ते आदि की जूनियों में भटकता रहा, फिर भी तुझे (अब) शर्म नहीं आई (कि तू अभी भी नाम नहीं सिमरता)। परमात्मा का अमृत-नाम विसार के क्यों (विकारों का) जहर खा रहा है?।3।(हे भाई!) शास्त्रों के अनुसार किए जाने वाले कौन से काम है, और शास्त्रों में कौन से कामों के करने की मनाही है– इस वहिम को छोड़ दे, और परमात्मा का नाम सिमर। हे दास कबीर! तू अपने गुरू की कृपा से अपने परमात्मा को ही अपना प्यारा (साथी) बना।4।5।



हे भाई ! जिस मनुख के मस्तक पर भाग्य (उदय हो) उस को प्यारे गुरु ने परमात्मा का नाम दे दिया। उस मनुख का (फिर) सदा का काम ही जगत में यह बन जाता है कि वह औरों को हरि नाम दृढ़ करता है जपता है (नाम जपने के लिए प्रेरणा करता है।।१।। हे भाई! परमात्मा के सेवक के लिए परमात्मा का नाम (ही) बढ़ाई है नाम ही शोभा है। हरि-नाम ही उस कि आत्मिक अवस्था अहि, नाम ही उस की इज्ज़त है। जो कुछ परमात्मा की रजा में होता है, सेवक उस को (सर माथे पर) मानता है।।१।।रहाउ।। परमात्मा का नाम-धन जिस मनुख के पास है, वोही पूरा साहूकार है। हे नानक! वह मनुख हरि-नाम सुमिरन को ही अपना असली विहार समझता है, नाम का ही उस को सहारा रहता है, नाम की ही वह कमाई खाता है।

Thursday, June 20, 2024

अच्छे विचार करे विचार

 पहचान की नुमाईश, जरा कम करें... जहाँ भी "मैं" लिखा है, उसे "हम" करें...


हमारी "इच्छाओं" से ज़्यादा "सुन्दर"... "ईश्वर" की "योजनाएँ" होती हैं...


पहाड़ो पर बैठकर तप करना सरल है... लेकिन परिवार में सबके बीच रहकर धीरज बनाये रखना कठिन है, और यही सच्चा तप है...


"ईश्वर" हमें कभी "सजा" नही देते... हमारे "कर्म" ही हमें "सजा" देते है..


हर "परिस्थिति" में "धैर्य" रखना... "ज्ञान" का सबसे बड़ा "संकेत" है..


"शांत" रहना सीखें... आपका "गुस्सा" किसी और की "जीत" है..


"सफलता" का "मुख्य आधार"... "सकारात्मक सोच" और "निरंतर प्रयास" है


"चालाकी" चार दिन "चमकती" है... और "ईमानदारी" ज़िंदगी भर.
"शरीर " का वजन बढ़े तो व्यायाम कीजिए...
"मन " का बढ़े तो ध्यान कीजिए..
और "धन " का बढ़े तो दान कीजिए..

Saturday, June 8, 2024

नाम जप

नाम जप करना जीवन में प्रभु को पाने का एक सुंदर मार्ग हैं,मन को नियंत्रित रखता है नाम जप।

सरल और आसान लगता है पर उतना सहज नहीं है,आपको नाम जप हर समय करना है, ताकि एक पल आहे जब आप प्रभु से मिल जाय।

नाम जप करते हुए प्रभु के बताए हुए मार्ग पर चलना है।

मन में बहुत आतंक होगा, माया तुम्हे अपने पास खींच कर नाम जप से अलग करेगी। मन को एकाग्र करके शांत रखे। प्रभु पर विश्वास रखें। नाम जप ही जीवन में आने वाले कर्म को अच्छा करेगा।

काम, क्रोध, लोभ, लालच, अहंकार, भय यह सब से परे होकर नाम जप करें।

नाम जप में बहुत शक्ति होती है भक्ति करने की।

आप भगवान राम जी के भक्त हनुमान जी को देखे हमेशा राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम नाम जप करते हैं ।

भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु जी की अराधना करते मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करते है।

भक्तों में सर्वश्रेष्ठ देवर्षि नारद भगवान विष्णु जी के निरंतर भगवद-गुणों  नारायण-नारायण नारायण-नारायण नारायण-नारायण नारायण-नारायण का जप करते है ।

Subtraction of numbers solved

 Subtraction of numbers from 1 to 10 in reverse order

Magic of of maths in subtraction 

1-10=-9

2-9=-7

3-8=-5

4-7=-3

5-6=-1

6-5=1

7-4=3

8-3=5

9-2=7

10-1=9

Addition in doubles

 Simple addition for children 

1+1=2

2+2=4

4+4=8

8+8=16

16+16=32

32+32=64

64+64=128

128+128=256

256+256=512

512+512=1024

1024+1024=2048

2048+2048=4096

4096+4096=8192

8192+8192=16384

16384+16384=32768

32768+32768=65536

65536+65536=131072

131072+131072=262144

262144+262144=524288

524288+524288=1048576

1048576+1048576=2097152

2097152+2097152=4194304

4194304+4194304=8388608

8388608+8388608=16777216

16777216+16777216=33554432

33554432+33554432=67108864

67108864+67108864=134217728

134217728+134217728=268435456

268435456+268435456=536870912

536870912+536870912=1073741824

1073741824+1073741824=2147483648

2147483648+2147483648=4294967296

4294967296+4294967296=8589934592

8589934592+8589934592=17179869184

17179869184+17179869184=34359738368

34359738368+34359738368=68719476736

68719476736+68719476736=137438953472

137438953472+137438953472=274877906944

Saturday, June 1, 2024

Four Vedas

 The time of the creation of the Vedas was 4500 BC.

Veda is derived from the Sanskrit word, which means knowledge


Four Vedas: 

Rigveda, 

Yajurveda, 

Samaveda, and 

Atharvaveda. 



Rig-status,

Yaju-transformation, 

Sama-dynamic, and 

Atharva-root. 


Rik is also called Dharma,

Yajuh is called Moksha, 

Sama is called Kama, and

Atharva is also called Artha.

 On the basis of these, Dharmashastra, Arthashastra, Kamashastra, and Mokshashastra have been created.

Tuesday, May 14, 2024

रामायण

रामायण


दशरथ की तीन पत्नियाँ – कौशल्या, सुमित्रा , कैकेयी
दशरथ के चार पुत्र – राम,लक्ष्मण,भरत,शत्रुघ्न


दशरथ: राम के पिता और कौशल के राजा

कौशल्या: दशरथ की रानी और राम की माता

सुमित्रा: दशरथ की पत्नी; लक्ष्मण और शत्रुघ्न की माता

कैकेयी: दशरथ की सबसे छोटी रानी और भरत की माँ जिन्होंने राम के वनवास के लिए कहा था


राम के तीन भाई लक्ष्मण, भरत,शत्रुघ्न


राम: रामायण के मुख्य नायक - भगवान विष्णु का अवतार; कोसल के राजा दशरथ के पुत्र अयोध्या के राजकुमार

लक्ष्मण: रानी सुमित्रा के पुत्र और राम के भाई उर्फ लक्ष्मण

भरत: राम के भाई और कैकेयी के पुत्र

शत्रुघ्न: राम के छोटे भाई



जनक: मिथिला के राजा; सीता के पिता, जिन्होंने उन्हें कुंड में पाया था

सुनयना: राजा जनक की पत्नी; सीता की माता

सीता: जनक की बेटी और राम की पत्नी

उर्मिला: लक्ष्मण की पत्नी; राजा जनक की बेटी और सीता की बहन

मांडवी: भरत की पत्नी और राजा जनक की बेटी

श्रुतकीर्ति: शत्रुघ्न की पत्नी और राजा जनक की बेटी


हनुमान: पवन का पुत्र - पवन देवता; राम के भक्त और वानर जनजाति में एक प्रमुख योद्धा


राम और सीता के दो पुत्र-लव ,कुश

लव: राम और सीता के पुत्र

कुश: राम और सीता के पुत्र


रावण: लंका के दस सिरों वाले राजा, जिन्होंने सीता का हरण किया था; विभीषण और सूर्पनखा के भाई; इंद्रजीत के पिता; मंदोदरी के पति


विभीषण: रावण का भाई जो राम से मिलने के लिए लंका छोड़ देता है और बाद में लंका का राजा बन जाता है


कुंभकर्ण: रावण का भाई सोने और खाने के लिए जाना जाता है


इंद्रजीत: रावण का पुत्र जिसने जादुई शक्तियों के साथ राम से युद्ध किया


मेघनाद: रावण का पुत्र, जिसने अपने बाण से लक्ष्मण को युद्ध के मैदान में बेहोश कर दिया

Friday, April 19, 2024

रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम ॥

 रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम ॥

सुंदर विग्रह मेघश्याम गंगा तुलसी शालग्राम ॥

भद्रगिरीश्वर सीताराम भगत-जनप्रिय सीताराम ॥ 

जानकीरमणा सीताराम जय जय राघव सीताराम ॥

रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम ॥ 

Wednesday, April 17, 2024

Humanity

 Help each and everyone with open heart .

Always be kind and polite to everyone, have patience.

Make your surroundings with humanity, treat animals with love and care .

Do the needful for the society.

Respect the nature.

Learn from open sky.

Humans have the power of thinking which is the gift of God.

Humanity will make the world beautiful for our future generations.

Spread smile always with your words and work.

Humanity don't have age.

Generosity is humanity.

Healthy human is wealthy human.

Always run for weak for their support.

Humanity service is the best service of life which earns lots of blessings which is uncountable and incomparable to any other things in this world. 

Thursday, March 7, 2024

Bharat pilgrimage


 In Bharat to do pilgrimage there are 

8 temples/idols of the Ashtavinayaka ,

7 Sapta Puri holy cities, 

4 Dhams (Char Dham)

12 Jyotirlinga devoted to Shiva, 

51 Shakti Pithas



The eight temples/idols of the Ashtavinayaka in their religious sequence are:


Ashtavinayaka Temples

Temple Location

1 Mayureshwar Temple - Morgaon, Pune district

2 Siddhivinayak Temple - Siddhatek, Ahmednagar district

3 Ballaleshwar Temple - Pali, Raigad district

4 Varada Vinayak Temple - Mahad, Raigad district

5 Chintamani Temple -  Theur, Pune district

6 Girijatmaj Temple - Lenyadri, Pune district

7 Vighneshwar Temple - Ozar, Pune district

8 Mahaganapati Temple - Ranjangaon, Pune district



Sapta Puri modern names of these seven cities are:

(bless the pilgrim with moksha which means liberation from the cycle of birth and death)

1.Ayodhya

2.Mathura

3.Haridwar (Maya or Gaya)

4.Varanasi (Kashi)

5.Kanchipuram (Kanchi)

6.Ujjain (Avantika)

7.Dwarka (Dwaraka)



The four dhama are

1.Dham of Satyuga- Badrinath, Uttarakhand

2.Dham of Tretayuga -Rameswaram, Tamil Nadu

3.Dham of Dwaparayuga - Dwarka, Gujarat

4.Dham of Kaliyuga - Jagannatha Puri, Odisha.



Twelve jyothirlinga are 

1.Somnath in Gujarat, 

2.Mallikarjuna at Srisailam in Andra Pradesh,

 3.Mahakaleswar at Ujjain in Madhya Pradesh,

4.Omkareshwar in Madhya Pradesh, 

5.Kedarnath in Himalayas, 

6.Bhimashankar in Maharashtra, 

7.Viswanath at Varanasi in Uttar Pradesh,

8.Triambakeshwar in Maharashtra, 

9.Vaidyanath Jyotirlinga at Deogarh in Jharkhand,

 10.Nageswar at Dwarka in Gujarat, 

11.Rameshwar at Rameswaram in Tamil Nadu and

 12.Ghushmeshwar at Shiwar in Sawai Madhopur district Rajasthan,

12th joytrilinga is Grishneshwar at ellora in Chhatrapati Sambhajinagar district Maharashtra.


Saturday, February 3, 2024

Good thoughts

"विपत्ति वो औषधि है जो भगवान से प्यार करा देती है"


"Adversity is the medicine that makes one love God"

Monday, January 29, 2024

Chaupai Sahib Path in Hindi

 


Chaupai Sahib Path in Hindi 



चौपयी साहिब 



ੴ स्री वाहगुरू जी की फतह ॥


पातिसाही १० ॥


कबियो बाच बेनती ॥


चौपई ॥


हमरी करो हाथ दै रछा ॥

पूरन होइ चि्त की इछा ॥

तव चरनन मन रहै हमारा ॥

अपना जान करो प्रतिपारा ॥१॥


हमरे दुशट सभै तुम घावहु ॥

आपु हाथ दै मोहि बचावहु ॥

सुखी बसै मोरो परिवारा ॥

सेवक सि्खय सभै करतारा ॥२॥


मो रछा निजु कर दै करियै ॥

सभ बैरिन कौ आज संघरियै ॥

पूरन होइ हमारी आसा ॥

तोरि भजन की रहै पियासा ॥३॥


तुमहि छाडि कोई अवर न धयाऊं ॥

जो बर चहों सु तुमते पाऊं ॥

सेवक सि्खय हमारे तारियहि ॥

चुन चुन श्त्रु हमारे मारियहि ॥४॥


आपु हाथ दै मुझै उबरियै ॥

मरन काल का त्रास निवरियै ॥

हूजो सदा हमारे प्छा ॥

स्री असिधुज जू करियहु ्रछा ॥५॥


राखि लेहु मुहि राखनहारे ॥

साहिब संत सहाइ पियारे ॥

दीनबंधु दुशटन के हंता ॥

तुमहो पुरी चतुरदस कंता ॥६॥


काल पाइ ब्रहमा बपु धरा ॥

काल पाइ शिवजू अवतरा ॥

काल पाइ करि बिशन प्रकाशा ॥

सकल काल का कीया तमाशा ॥७॥


जवन काल जोगी शिव कीयो ॥

बेद राज ब्रहमा जू थीयो ॥

जवन काल सभ लोक सवारा ॥

नमशकार है ताहि हमारा ॥८॥


जवन काल सभ जगत बनायो ॥

देव दैत ज्छन उपजायो ॥

आदि अंति एकै अवतारा ॥

सोई गुरू समझियहु हमारा ॥९॥


नमशकार तिस ही को हमारी ॥

सकल प्रजा जिन आप सवारी ॥

सिवकन को सवगुन सुख दीयो ॥

श्त्रुन को पल मो बध कीयो ॥१०॥


घट घट के अंतर की जानत ॥

भले बुरे की पीर पछानत ॥

चीटी ते कुंचर असथूला ॥

सभ पर क्रिपा द्रिशटि करि फूला ॥११॥


संतन दुख पाए ते दुखी ॥

सुख पाए साधन के सुखी ॥

एक एक की पीर पछानै ॥

घट घट के पट पट की जानै ॥१२॥


जब उदकरख करा करतारा ॥

प्रजा धरत तब देह अपारा ॥

जब आकरख करत हो कबहूं ॥

तुम मै मिलत देह धर सभहूं ॥१३॥


जेते बदन स्रिशटि सभ धारै ॥

आपु आपुनी बूझि उचारै ॥

तुम सभ ही ते रहत निरालम ॥

जानत बेद भेद अरु आलम ॥१४॥


निरंकार न्रिबिकार न्रिल्मभ ॥

आदि अनील अनादि अस्मभ ॥

ताका मूड़्ह उचारत भेदा ॥

जाको भेव न पावत बेदा ॥१५॥


ताकौ करि पाहन अनुमानत ॥

महां मूड़्ह कछु भेद न जानत ॥

महांदेव कौ कहत सदा शिव ॥

निरंकार का चीनत नहि भिव ॥१६॥


आपु आपुनी बुधि है जेती ॥

बरनत भिंन भिंन तुहि तेती ॥

तुमरा लखा न जाइ पसारा ॥

किह बिधि सजा प्रथम संसारा ॥१७॥


एकै रूप अनूप सरूपा ॥

रंक भयो राव कहीं भूपा ॥

अंडज जेरज सेतज कीनी ॥

उतभुज खानि बहुरि रचि दीनी ॥१८॥


कहूं फूलि राजा ह्वै बैठा ॥

कहूं सिमटि भयो शंकर इकैठा ॥

सगरी स्रिशटि दिखाइ अच्मभव ॥

आदि जुगादि सरूप सुय्मभव ॥१९॥


अब ्रछा मेरी तुम करो ॥

सि्खय उबारि असि्खय स्घरो ॥

दुशट जिते उठवत उतपाता ॥

सकल मलेछ करो रण घाता ॥२०॥


जे असिधुज तव शरनी परे ॥

तिन के दुशट दुखित ह्वै मरे ॥

पुरख जवन पगु परे तिहारे ॥

तिन के तुम संकट सभ टारे ॥२१॥


जो कलि कौ इक बार धिऐहै ॥

ता के काल निकटि नहि ऐहै ॥

्रछा होइ ताहि सभ काला ॥

दुशट अरिशट टरे ततकाला ॥२२॥


क्रिपा द्रिशाटि तन जाहि निहरिहो ॥

ताके ताप तनक महि हरिहो ॥

रि्धि सि्धि घर मों सभ होई ॥

दुशट छाह छ्वै सकै न कोई ॥२३॥


एक बार जिन तुमैं स्मभारा ॥

काल फास ते ताहि उबारा ॥

जिन नर नाम तिहारो कहा ॥

दारिद दुशट दोख ते रहा ॥२४॥


खड़ग केत मैं शरनि तिहारी ॥

आप हाथ दै लेहु उबारी ॥

सरब ठौर मो होहु सहाई ॥

दुशट दोख ते लेहु बचाई ॥२५॥



Tuesday, January 23, 2024

Japji Sahib in Hindi

 Japji Sahib in Hindi


ੴ सतिनामु करता पुरखु 

निरभउ निरवैरु अकाल मूरति 

अजूनी सैभं 

गुरप्रसादि ॥


॥ जपु ॥


आदि सचु जुगादि सचु ॥

है भी सचु नानक होसी भी सचु ॥१॥


सोचै सोचि न होवई जे सोची लख वार ॥

चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिव तार ॥

भुखिआ भुख न उतरी जे बंना पुरीआ भार ॥

सहस सिआणपा लख होहि त इक न चलै नालि ॥

किव सचिआरा होईऐ किव कूड़ै तुटै पालि ॥

हुकमि रजाई चलणा नानक लिखिआ नालि ॥१॥


हुकमी होवनि आकार हुकमु न कहिआ जाई ॥

हुकमी होवनि जीअ हुकमि मिलै वडिआई ॥

हुकमी उतमु नीचु हुकमि लिखि दुख सुख पाईअहि ॥

इकना हुकमी बखसीस इकि हुकमी सदा भवाईअहि ॥

हुकमै अंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोइ ॥

नानक हुकमै जे बुझै त हउमै कहै न कोइ ॥२॥


गावै को ताणु होवै किसै ताणु ॥

गावै को दाति जाणै नीसाणु ॥

गावै को गुण वडिआईआ चार ॥

गावै को विदिआ विखमु वीचारु ॥

गावै को साजि करे तनु खेह ॥

गावै को जीअ लै फिरि देह ॥

गावै को जापै दिसै दूरि ॥

गावै को वेखै हादरा हदूरि ॥

कथना कथी न आवै तोटि ॥

कथि कथि कथी कोटी कोटि कोटि ॥

देदा दे लैदे थकि पाहि ॥

जुगा जुगंतरि खाही खाहि ॥

हुकमी हुकमु चलाए राहु ॥

नानक विगसै वेपरवाहु ॥३॥


साचा साहिबु साचु नाइ भाखिआ भाउ अपारु ॥

आखहि मंगहि देहि देहि दाति करे दातारु ॥

फेरि कि अगै रखीऐ जितु दिसै दरबारु ॥

मुहौ कि बोलणु बोलीऐ जितु सुणि धरे पिआरु ॥

अम्रित वेला सचु नाउ वडिआई वीचारु ॥

करमी आवै कपड़ा नदरी मोखु दुआरु ॥

नानक एवै जाणीऐ सभु आपे सचिआरु ॥४॥


थापिआ न जाइ कीता न होइ ॥

आपे आपि निरंजनु सोइ ॥

जिनि सेविआ तिनि पाइआ मानु ॥

नानक गावीऐ गुणी निधानु ॥

गावीऐ सुणीऐ मनि रखीऐ भाउ ॥

दुखु परहरि सुखु घरि लै जाइ ॥

गुरमुखि नादं गुरमुखि वेदं गुरमुखि रहिआ समाई ॥

गुरु ईसरु गुरु गोरखु बरमा गुरु पारबती माई ॥

जे हउ जाणा आखा नाही कहणा कथनु न जाई ॥

गुरा इक देहि बुझाई ॥

सभना जीआ का इकु दाता सो मै विसरि न जाई ॥५॥


तीरथि नावा जे तिसु भावा विणु भाणे कि नाइ करी ॥

जेती सिरठि उपाई वेखा विणु करमा कि मिलै लई ॥

मति विचि रतन जवाहर माणिक जे इक गुर की सिख सुणी ॥

गुरा इक देहि बुझाई ॥

सभना जीआ का इकु दाता सो मै विसरि न जाई ॥६॥


जे जुग चारे आरजा होर दसूणी होइ ॥

नवा खंडा विचि जाणीऐ नालि चलै सभु कोइ ॥

चंगा नाउ रखाइ कै जसु कीरति जगि लेइ ॥

जे तिसु नदरि न आवई त वात न पुछै के ॥

कीटा अंदरि कीटु करि दोसी दोसु धरे ॥

नानक निरगुणि गुणु करे गुणवंतिआ गुणु दे ॥

तेहा कोइ न सुझई जि तिसु गुणु कोइ करे ॥७॥


सुणिऐ सिध पीर सुरि नाथ ॥

सुणिऐ धरति धवल आकास ॥

सुणिऐ दीप लोअ पाताल ॥

सुणिऐ पोहि न सकै कालु ॥

नानक भगता सदा विगासु ॥

सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥८॥


सुणिऐ ईसरु बरमा इंदु ॥

सुणिऐ मुखि सालाहण मंदु ॥

सुणिऐ जोग जुगति तनि भेद ॥

सुणिऐ सासत सिम्रिति वेद ॥

नानक भगता सदा विगासु ॥

सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥९॥


सुणिऐ सतु संतोखु गिआनु ॥

सुणिऐ अठसठि का इसनानु ॥

सुणिऐ पड़ि पड़ि पावहि मानु ॥

सुणिऐ लागै सहजि धिआनु ॥

नानक भगता सदा विगासु ॥

सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥१०॥


सुणिऐ सरा गुणा के गाह ॥

सुणिऐ सेख पीर पातिसाह ॥

सुणिऐ अंधे पावहि राहु ॥

सुणिऐ हाथ होवै असगाहु ॥

नानक भगता सदा विगासु ॥

सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥११॥


मंने की गति कही न जाइ ॥

जे को कहै पिछै पछुताइ ॥

कागदि कलम न लिखणहारु ॥

मंने का बहि करनि वीचारु ॥

ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥

जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१२॥


मंनै सुरति होवै मनि बुधि ॥

मंनै सगल भवण की सुधि ॥

मंनै मुहि चोटा ना खाइ ॥

मंनै जम कै साथि न जाइ ॥

ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥

जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१३॥


मंनै मारगि ठाक न पाइ ॥

मंनै पति सिउ परगटु जाइ ॥

मंनै मगु न चलै पंथु ॥

मंनै धरम सेती सनबंधु ॥

ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥

जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१४॥


मंनै पावहि मोखु दुआरु ॥

मंनै परवारै साधारु ॥

मंनै तरै तारे गुरु सिख ॥

मंनै नानक भवहि न भिख ॥

ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥

जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१५॥


पंच परवाण पंच परधानु ॥

पंचे पावहि दरगहि मानु ॥

पंचे सोहहि दरि राजानु ॥

पंचा का गुरु एकु धिआनु ॥

जे को कहै करै वीचारु ॥

करते कै करणै नाही सुमारु ॥

धौलु धरमु दइआ का पूतु ॥

संतोखु थापि रखिआ जिनि सूति ॥

जे को बुझै होवै सचिआरु ॥

धवलै उपरि केता भारु ॥

धरती होरु परै होरु होरु ॥

तिस ते भारु तलै कवणु जोरु ॥

जीअ जाति रंगा के नाव ॥

सभना लिखिआ वुड़ी कलाम ॥

एहु लेखा लिखि जाणै कोइ ॥

लेखा लिखिआ केता होइ ॥

केता ताणु सुआलिहु रूपु ॥

केती दाति जाणै कौणु कूतु ॥

कीता पसाउ एको कवाउ ॥

तिस ते होए लख दरीआउ ॥

कुदरति कवण कहा वीचारु ॥

वारिआ न जावा एक वार ॥

जो तुधु भावै साई भली कार ॥

तू सदा सलामति निरंकार ॥१६॥


असंख जप असंख भाउ ॥

असंख पूजा असंख तप ताउ ॥

असंख गरंथ मुखि वेद पाठ ॥

असंख जोग मनि रहहि उदास ॥

असंख भगत गुण गिआन वीचार ॥

असंख सती असंख दातार ॥

असंख सूर मुह भख सार ॥

असंख मोनि लिव लाइ तार ॥

कुदरति कवण कहा वीचारु ॥

वारिआ न जावा एक वार ॥

जो तुधु भावै साई भली कार ॥

तू सदा सलामति निरंकार ॥१७॥


असंख मूरख अंध घोर ॥

असंख चोर हरामखोर ॥

असंख अमर करि जाहि जोर ॥

असंख गलवढ हतिआ कमाहि ॥

असंख पापी पापु करि जाहि ॥

असंख कूड़िआर कूड़े फिराहि ॥

असंख मलेछ मलु भखि खाहि ॥

असंख निंदक सिरि करहि भारु ॥

नानकु नीचु कहै वीचारु ॥

वारिआ न जावा एक वार ॥

जो तुधु भावै साई भली कार ॥

तू सदा सलामति निरंकार ॥१८॥


असंख नाव असंख थाव ॥

अगम अगम असंख लोअ ॥

असंख कहहि सिरि भारु होइ ॥

अखरी नामु अखरी सालाह ॥

अखरी गिआनु गीत गुण गाह ॥

अखरी लिखणु बोलणु बाणि ॥

अखरा सिरि संजोगु वखाणि ॥

जिनि एहि लिखे तिसु सिरि नाहि ॥

जिव फुरमाए तिव तिव पाहि ॥

जेता कीता तेता नाउ ॥

विणु नावै नाही को थाउ ॥

कुदरति कवण कहा वीचारु ॥

वारिआ न जावा एक वार ॥

जो तुधु भावै साई भली कार ॥

तू सदा सलामति निरंकार ॥१९॥


भरीऐ हथु पैरु तनु देह ॥

पाणी धोतै उतरसु खेह ॥

मूत पलीती कपड़ु होइ ॥

दे साबूणु लईऐ ओहु धोइ ॥

भरीऐ मति पापा कै संगि ॥

ओहु धोपै नावै कै रंगि ॥

पुंनी पापी आखणु नाहि ॥

करि करि करणा लिखि लै जाहु ॥

आपे बीजि आपे ही खाहु ॥

नानक हुकमी आवहु जाहु ॥२०॥


तीरथु तपु दइआ दतु दानु ॥

जे को पावै तिल का मानु ॥

सुणिआ मंनिआ मनि कीता भाउ ॥

अंतरगति तीरथि मलि नाउ ॥

सभि गुण तेरे मै नाही कोइ ॥

विणु गुण कीते भगति न होइ ॥

सुअसति आथि बाणी बरमाउ ॥

सति सुहाणु सदा मनि चाउ ॥

कवणु सु वेला वखतु कवणु कवण थिति कवणु वारु ॥

कवणि सि रुती माहु कवणु जितु होआ आकारु ॥

वेल न पाईआ पंडती जि होवै लेखु पुराणु ॥

वखतु न पाइओ कादीआ जि लिखनि लेखु कुराणु ॥

थिति वारु ना जोगी जाणै रुति माहु ना कोई ॥

जा करता सिरठी कउ साजे आपे जाणै सोई ॥

किव करि आखा किव सालाही किउ वरनी किव जाणा ॥

नानक आखणि सभु को आखै इक दू इकु सिआणा ॥

वडा साहिबु वडी नाई कीता जा का होवै ॥

नानक जे को आपौ जाणै अगै गइआ न सोहै ॥२१॥


पाताला पाताल लख आगासा आगास ॥

ओड़क ओड़क भालि थके वेद कहनि इक वात ॥

सहस अठारह कहनि कतेबा असुलू इकु धातु ॥

लेखा होइ त लिखीऐ लेखै होइ विणासु ॥

नानक वडा आखीऐ आपे जाणै आपु ॥२२॥


सालाही सालाहि एती सुरति न पाईआ ॥

नदीआ अतै वाह पवहि समुंदि न जाणीअहि ॥

समुंद साह सुलतान गिरहा सेती मालु धनु ॥

कीड़ी तुलि न होवनी जे तिसु मनहु न वीसरहि ॥२३॥


अंतु न सिफती कहणि न अंतु ॥

अंतु न करणै देणि न अंतु ॥

अंतु न वेखणि सुणणि न अंतु ॥

अंतु न जापै किआ मनि मंतु ॥

अंतु न जापै कीता आकारु ॥

अंतु न जापै पारावारु ॥

अंत कारणि केते बिललाहि ॥

ता के अंत न पाए जाहि ॥

एहु अंतु न जाणै कोइ ॥

बहुता कहीऐ बहुता होइ ॥

वडा साहिबु ऊचा थाउ ॥

ऊचे उपरि ऊचा नाउ ॥

एवडु ऊचा होवै कोइ ॥

तिसु ऊचे कउ जाणै सोइ ॥

जेवडु आपि जाणै आपि आपि ॥

नानक नदरी करमी दाति ॥२४॥


बहुता करमु लिखिआ ना जाइ ॥

वडा दाता तिलु न तमाइ ॥

केते मंगहि जोध अपार ॥

केतिआ गणत नही वीचारु ॥

केते खपि तुटहि वेकार ॥

केते लै लै मुकरु पाहि ॥

केते मूरख खाही खाहि ॥

केतिआ दूख भूख सद मार ॥

एहि भि दाति तेरी दातार ॥

बंदि खलासी भाणै होइ ॥

होरु आखि न सकै कोइ ॥

जे को खाइकु आखणि पाइ ॥

ओहु जाणै जेतीआ मुहि खाइ ॥

आपे जाणै आपे देइ ॥

आखहि सि भि केई केइ ॥

जिस नो बखसे सिफति सालाह ॥

नानक पातिसाही पातिसाहु ॥२५॥


अमुल गुण अमुल वापार ॥

अमुल वापारीए अमुल भंडार ॥

अमुल आवहि अमुल लै जाहि ॥

अमुल भाइ अमुला समाहि ॥

अमुलु धरमु अमुलु दीबाणु ॥

अमुलु तुलु अमुलु परवाणु ॥

अमुलु बखसीस अमुलु नीसाणु ॥

अमुलु करमु अमुलु फुरमाणु ॥

अमुलो अमुलु आखिआ न जाइ ॥

आखि आखि रहे लिव लाइ ॥

आखहि वेद पाठ पुराण ॥

आखहि पड़े करहि वखिआण ॥

आखहि बरमे आखहि इंद ॥

आखहि गोपी तै गोविंद ॥

आखहि ईसर आखहि सिध ॥

आखहि केते कीते बुध ॥

आखहि दानव आखहि देव ॥

आखहि सुरि नर मुनि जन सेव ॥

केते आखहि आखणि पाहि ॥

केते कहि कहि उठि उठि जाहि ॥

एते कीते होरि करेहि ॥

ता आखि न सकहि केई केइ ॥

जेवडु भावै तेवडु होइ ॥

नानक जाणै साचा सोइ ॥

जे को आखै बोलुविगाड़ु ॥

ता लिखीऐ सिरि गावारा गावारु ॥२६॥


सो दरु केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥

वाजे नाद अनेक असंखा केते वावणहारे ॥

केते राग परी सिउ कहीअनि केते गावणहारे ॥

गावहि तुहनो पउणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे ॥

गावहि चितु गुपतु लिखि जाणहि लिखि लिखि धरमु वीचारे ॥

गावहि ईसरु बरमा देवी सोहनि सदा सवारे ॥

गावहि इंद इदासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥

गावहि सिध समाधी अंदरि गावनि साध विचारे ॥

गावनि जती सती संतोखी गावहि वीर करारे ॥

गावनि पंडित पड़नि रखीसर जुगु जुगु वेदा नाले ॥

गावहि मोहणीआ मनु मोहनि सुरगा मछ पइआले ॥

गावनि रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले ॥

गावहि जोध महाबल सूरा गावहि खाणी चारे ॥

गावहि खंड मंडल वरभंडा करि करि रखे धारे ॥

सेई तुधुनो गावहि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥

होरि केते गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ वीचारे ॥

सोई सोई सदा सचु साहिबु साचा साची नाई ॥

है भी होसी जाइ न जासी रचना जिनि रचाई ॥

रंगी रंगी भाती करि करि जिनसी माइआ जिनि उपाई ॥

करि करि वेखै कीता आपणा जिव तिस दी वडिआई ॥

जो तिसु भावै सोई करसी हुकमु न करणा जाई ॥

सो पातिसाहु साहा पातिसाहिबु नानक रहणु रजाई ॥२७॥


मुंदा संतोखु सरमु पतु झोली धिआन की करहि बिभूति ॥

खिंथा कालु कुआरी काइआ जुगति डंडा परतीति ॥

आई पंथी सगल जमाती मनि जीतै जगु जीतु ॥

आदेसु तिसै आदेसु ॥

आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥२८॥


भुगति गिआनु दइआ भंडारणि घटि घटि वाजहि नाद ॥

आपि नाथु नाथी सभ जा की रिधि सिधि अवरा साद ॥

संजोगु विजोगु दुइ कार चलावहि लेखे आवहि भाग ॥

आदेसु तिसै आदेसु ॥

आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥२९॥


एका माई जुगति विआई तिनि चेले परवाणु ॥

इकु संसारी इकु भंडारी इकु लाए दीबाणु ॥

जिव तिसु भावै तिवै चलावै जिव होवै फुरमाणु ॥

ओहु वेखै ओना नदरि न आवै बहुता एहु विडाणु ॥

आदेसु तिसै आदेसु ॥

आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥३०॥


आसणु लोइ लोइ भंडार ॥

जो किछु पाइआ सु एका वार ॥

करि करि वेखै सिरजणहारु ॥

नानक सचे की साची कार ॥

आदेसु तिसै आदेसु ॥

आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥३१॥


इक दू जीभौ लख होहि लख होवहि लख वीस ॥

लखु लखु गेड़ा आखीअहि एकु नामु जगदीस ॥

एतु राहि पति पवड़ीआ चड़ीऐ होइ इकीस ॥

सुणि गला आकास की कीटा आई रीस ॥

नानक नदरी पाईऐ कूड़ी कूड़ै ठीस ॥३२॥


आखणि जोरु चुपै नह जोरु ॥

जोरु न मंगणि देणि न जोरु ॥

जोरु न जीवणि मरणि नह जोरु ॥

जोरु न राजि मालि मनि सोरु ॥

जोरु न सुरती गिआनि वीचारि ॥

जोरु न जुगती छुटै संसारु ॥

जिसु हथि जोरु करि वेखै सोइ ॥

नानक उतमु नीचु न कोइ ॥३३॥


राती रुती थिती वार ॥

पवण पाणी अगनी पाताल ॥

तिसु विचि धरती थापि रखी धरम साल ॥

तिसु विचि जीअ जुगति के रंग ॥

तिन के नाम अनेक अनंत ॥

करमी करमी होइ वीचारु ॥

सचा आपि सचा दरबारु ॥

तिथै सोहनि पंच परवाणु ॥

नदरी करमि पवै नीसाणु ॥

कच पकाई ओथै पाइ ॥

नानक गइआ जापै जाइ ॥३४॥


धरम खंड का एहो धरमु ॥

गिआन खंड का आखहु करमु ॥

केते पवण पाणी वैसंतर केते कान महेस ॥

केते बरमे घाड़ति घड़ीअहि रूप रंग के वेस ॥

केतीआ करम भूमी मेर केते केते धू उपदेस ॥

केते इंद चंद सूर केते केते मंडल देस ॥

केते सिध बुध नाथ केते केते देवी वेस ॥

केते देव दानव मुनि केते केते रतन समुंद ॥

केतीआ खाणी केतीआ बाणी केते पात नरिंद ॥

केतीआ सुरती सेवक केते नानक अंतु न अंतु ॥३५॥


गिआन खंड महि गिआनु परचंडु ॥

तिथै नाद बिनोद कोड अनंदु ॥

सरम खंड की बाणी रूपु ॥

तिथै घाड़ति घड़ीऐ बहुतु अनूपु ॥

ता कीआ गला कथीआ ना जाहि ॥

जे को कहै पिछै पछुताइ ॥

तिथै घड़ीऐ सुरति मति मनि बुधि ॥

तिथै घड़ीऐ सुरा सिधा की सुधि ॥३६॥


करम खंड की बाणी जोरु ॥

तिथै होरु न कोई होरु ॥

तिथै जोध महाबल सूर ॥

तिन महि रामु रहिआ भरपूर ॥

तिथै सीतो सीता महिमा माहि ॥

ता के रूप न कथने जाहि ॥

ना ओहि मरहि न ठागे जाहि ॥

जिन कै रामु वसै मन माहि ॥

तिथै भगत वसहि के लोअ ॥

करहि अनंदु सचा मनि सोइ ॥

सच खंडि वसै निरंकारु ॥

करि करि वेखै नदरि निहाल ॥

तिथै खंड मंडल वरभंड ॥

जे को कथै त अंत न अंत ॥

तिथै लोअ लोअ आकार ॥

जिव जिव हुकमु तिवै तिव कार ॥

वेखै विगसै करि वीचारु ॥

नानक कथना करड़ा सारु ॥३७॥


जतु पाहारा धीरजु सुनिआरु ॥

अहरणि मति वेदु हथीआरु ॥

भउ खला अगनि तप ताउ ॥

भांडा भाउ अम्रितु तितु ढालि ॥

घड़ीऐ सबदु सची टकसाल ॥

जिन कउ नदरि करमु तिन कार ॥

नानक नदरी नदरि निहाल ॥३८॥


सलोकु ॥


पवणु गुरू पाणी पिता माता धरति महतु ॥

दिवसु राति दुइ दाई दाइआ खेलै सगल जगतु ॥

चंगिआईआ बुरिआईआ वाचै धरमु हदूरि ॥

करमी आपो आपणी के नेड़ै के दूरि ॥

जिनी नामु धिआइआ गए मसकति घालि ॥

नानक ते मुख उजले केती छुटी नालि ॥१॥


Monday, January 22, 2024

हनुमान चालीसा

 ॥ जय श्रीराम ॥

॥ श्रीहनुमते नमः ॥

 हनुमान चालीसा

दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमनु मुकुरु सुधारि।

बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।


चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।

रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।

कंचन वरन विराज सुवेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै।

शंकर स्वयं केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग वन्दन।।

विद्यावान गुणी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा।।

भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा। नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कवि कोविद कहि सके कहाँ ते।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र विभीषन माना। लंकेश्वर भये सब जग जाना।।

जुग सहस्र योजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।

दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना।।

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।

संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम राय सिरताजा। तिनके काज सकल तुम साजा।

और मनोरथ जो कोई लावै। सोई अमित जीवन फल पावै।।

चारों युग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।

साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस वर दीन जानकी माता।।

राम रसायन तुम्हरे पासा। सादर हो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को भावै। जनम-जनम के दुख बिसरावै।।

अन्त काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेई सर्व सुख करई।।

संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

यह सत बार पाठ कर जोई। छूटहिं बंदि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।

दोहा

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।



शिव भोलेनाथ स्तुति

 जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणा-कर करतार हरे,   जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि, सुख-सार हरे जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर जय-जय प्रेमागार हरे,   जय ...