सो जाते हैं फूटपाठ पर अकबार बिछाके,
मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।
पहले भी ये हथेली छोटी थी।
अब भी ये हथेली छोटी है।
कल इससे शकहर गिर जाती थी।
अब इससे दवा गिर जाती है।
मौला ये तमन्ना है कि,
जब जान से जाऊ,
जिस शान से आया हूँ उसी शान से जाऊ।
क्या सूखे हुए फूल की किस्मत का भरोसा,
मालूम नहीं कब तेरे गुलधान से जाऊ।
जिंदा मुझे देखेंगी तो माँ चीक उटेंगी,
क्या जखम लिए पीट पे मैधान से जाऊ।
आँखें आपकी हों या मेरी हों,
बस इतनी सी ख्वाहिश है,
कभी नम न हों।
जिसने दी है जिंदगी उसका
साया भी नज़र नहीं आता
यूँ तो भर जाती है झोलियाँ
मगर देने वाला नज़र नही आता..
उनकी ‘परवाह’ मत करो,
जिनका ‘विश्वास’ “वक्त” के साथ बदल जाये..
‘परवाह’ सदा ‘उनकी’ करो;
जिनका ‘विश्वास’ आप पर “तब भी” रहे’
जब आप का “वक्त बदल” जाये..।
अक्सर महएंगे महंगे गाड़ी चलाने वाला घर पैदल जाता है।
*गुज़र जाते हैं खूबसूरत लम्हें ,*
*यूं ही मुसाफिरों की तरह .*
*यादें वहीं खडी रह जाती हैं ,*
*रूके रास्तों की तरह .*
एक *"उम्र"* के बाद *"उस उम्र"* की बातें
*"उम्र भर"* याद आती हैं ,
पर *"वह उम्र"* फिर *"उम्र भर"* नहीं आती...
*""सदा मुस्कुराते रहिये""*